उदयनिधि स्टालिन ने धर्म को बिमारियों से तोला, कहा इसका विरोध नहीं, बल्कि खात्मा किया जाना चाहिए
उदयनिधि के पिछले कुछ दिनों में सनातन धर्म पर दिए गए बयान पर सियासी गलियारे घरमाये हुए हैं। उनके इस बयान पर तीखी प्रतिक्रियाएं मिली हैं

ब्यूरो। रोज़ाना हिमाचल
उदयनिधि के पिछले कुछ दिनों में सनातन धर्म पर दिए गए बयान पर सियासी गलियारे घरमाये हुए हैं। उनके इस बयान पर तीखी प्रतिक्रियाएं मिली हैं। बता दें करुणानिधि के बेटे एमके स्टालिन तमिलनाडु के मुख्यमंत्री हैं और उनके बेटे उदयनिधि मंत्री हैं। बीते दिनों उदयनिधि स्टालिन ने कहा कि सनातन धर्म मलेरिया, डेंगू और कोरोना की तरह है और इसका विरोध नहीं, बल्कि खात्मा किया जाना चाहिए। उनके इस बयान पर जब तीखी प्रतिक्रियाएं आईं, तब भी वह अपने कथन पर अडिग रहे। क्योंकि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं बताया कि सनातन धर्म को खत्म करने के लिए उनकी पार्टी क्या करेगी, इसलिए जानना मुश्किल है कि वह किसी वैक्सीन का सहारा लेंगे या फिर कोई रसायन या औषधि तैयार कराएंगे? वह कुछ भी करें, मगर यह आश्चर्यजनक है कि ममता बनर्जी को छोड़कर आइएनडीआइए के घटकों के किसी बड़े नेता ने उदयनिधि के नफरती बयान की निंदा नहीं की। लालू यादव, नीतीश कुमार से लेकर हनुमान भक्त अखिलेश यादव और शिव भक्त राहुल गांधी भी मौन साध गए। यह जरूरी नहीं कि राहुल हर मुद्दे पर कुछ कहें ही, पर उनका मौन इसलिए हैरान करता है, क्योंकि वह मोहब्बत की दुकान चलाने का दावा करते हैं। क्या उन्हें इसका भान है कि उनकी इस दुकान के एक भागीदार उसमें कितना नफरती माल बेच रहे हैं? क्या उदयनिधि का बयान वाकई ‘जुड़ेगा भारत-जीतेगा इंडिया’ नारे के अनुरूप है?
कांग्रेस के एक-दो नेताओं ने उदयनिधि के बयान से असहमति जताई तो कुछ ने उनका न केवल बचाव किया, बल्कि उन्हें सही भी ठहराया। इनमें मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे एवं कर्नाटक सरकार में मंत्री प्रियांक खरगे और पी. चिदंबरम के पुत्र कार्ति चिदंबरम प्रमुख हैं। राहुल गांधी के करीबी और कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने एक तरह से उदयनिधि का समर्थन करते हुए कहा, ‘हम सर्वधर्म समभाव में विश्वास रखते हैं, लेकिन आपको यह भी समझना होगा कि सभी दलों को अपनी बात कहने की आजादी है।’ साफ है कि उन्होंने उदयनिधि के बयान पर अभिव्यक्ति की आजादी की चादर डाल दी।
यदि उदयनिधि का द्वेष भरा बयान अभिव्यक्ति की आजादी है तो फिर हेट स्पीच क्या होती है? हेट स्पीच पर हल्ला मचाने वाले सेक्युलर-लिबरल तत्वों की चुप्पी पर भी गौर करें। ऐसा लगता है कि उन्हें सांप सूंघ गया है।
अपने बयान पर अड़े उदयनिधि का कहना है कि उन्होंने सनातन धर्म को खत्म करने की बात इसलिए की, क्योंकि वह समानता और सामाजिक न्याय का विरोधी है। द्रमुक खुद को सामाजिक न्याय का चैंपियन बताता है, लेकिन करुणानिधि के बेटों, बेटी, पोते और भांजों समेत करीब आधा दर्जन लोग राजनीति में सक्रिय हैं। क्या इससे सामाजिक न्याय को बल मिल रहा है? जहां तक समानता की बात है तो इससे इन्कार नहीं कि हिंदू समाज में जातिभेद है, लेकिन इस समस्या को न केवल स्वीकारा जाता है, बल्कि न जाने कबसे उसके खिलाफ लड़ाई भी लड़ी जा रही है। इसके लिए कानून भी बनाए गए हैं। जातिभेद की बुराई को खत्म करने के अभियान के तहत काफी कुछ हासिल किया जा चुका है, लेकिन अभी और काम करना शेष है।ऐसा नहीं है कि केवल हिंदू समाज ही जातिभेद या असमानता से ग्रस्त है। जातिभेद मुसलमानों और ईसाइयों में भी घर किए हुए है। यह बात और है कि इन समुदायों के नेता और धर्मगुरु यह स्वीकार नहीं करते कि उनके यहां असमानता है। उनकी पोल खुलती है, इन तथ्यों से कि मुस्लिम समाज अशराफ, अजलाफ और अरजाल में विभाजित है। अशराफ उच्च वर्ग के मुस्लिम हैं तो अजलाफ पिछड़े वर्ग के और अरजाल उनसे भी नीचे-दलितों जैसे। अजलाफ और अरजाल मुसलमानों को ही पसमांदा कहा जाता है।
कई जगह पसमांदा मुसलमानों की मस्जिदें और कब्रिस्तान अलग हैं। असमानता ईसाई समाज में भी व्याप्त है। जो दलित-पिछड़े हिंदू समानता और सम्मान की चाह में ईसाई बन गए, उनके भी गिरजाघर और कब्रिस्तान अलग हैं।यदि ईसाई और मुस्लिम समाज में कहीं कोई असमानता नहीं तो क्या कारण है कि जो हिंदू ईसाई और मुस्लिम बन गए, वे अपने लिए आरक्षण मांग रहे हैं? दलित ईसाई और दलित मुस्लिम इसीलिए आरक्षण मांग रहे, क्योंकि समानता की बात करने वाला मुस्लिम और ईसाई समाज का उच्च वर्ग मतांतरित लोगों को हेय दृष्टि से देखता है और उनके साथ समानता का व्यवहार नहीं करता। यह समस्या केवल भारत में ही नहीं, दुनिया भर में है। सबको पता है कि अमेरिका में अश्वेत ईसाई किस तरह उपेक्षा के शिकार हैं। इसी तरह अरब जगत में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश के मुसलमानों को दोयम दर्जे का मुस्लिम माना जाता है। इन देशों का कोई मुस्लिम सऊदी अरब, बहरीन, कतर आदि देशों की लड़की से निकाह करने की बात सपने में भी नहीं सोच सकता। क्या उदयनिधि और उनके साथ खड़े लोग इस्लाम और ईसाइयत के खिलाफ भी वैसा कुछ कह सकेंगे, जैसा उन्होंने सनातन धर्म को लेकर कहा?
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