आखिर क्यों मनाया जाता है करवा चौथ व्रत
करवा चौथ 2025: विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-शांति के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। जानें कथा और पूजा विधि।

करवा चौथ: प्रेम और भक्ति का पवित्र व्रत
करवा चौथ उत्तर भारत का प्रसिद्ध व्रत है, जिसे विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, सुख और समृद्धि के लिए निर्जला रखती हैं। यह व्रत सिर्फ धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि पति-पत्नी के बीच विश्वास, प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। हिमाचल प्रदेश के कई जिलों में यह पर्व धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है, जहां महिलाएं समूह में पूजा करती हैं, पारंपरिक गीत गाती हैं और अपनी साज-सज्जा में सज-धजकर त्योहार का आनंद लेती हैं।
करवा चौथ की पूजा विधि और समय
इस व्रत में सुबह सर्गी ग्रहण की जाती है, जिसे सास या सखी देती हैं। दिनभर निर्जला उपवास रखा जाता है, जिसमें न भोजन होता है और न पानी। शाम को महिलाएं करवा चौथ की कथा सुनती हैं और मिट्टी या मिट्टी/सिंधु से बने करवे में जल, चावल और रोली चढ़ाकर पूजा करती हैं। चंद्रमा निकलने पर चलनी से चंद्र और अपने पति का चेहरा देखकर व्रत खोलती हैं। हिमाचल प्रदेश में 2025 में चंद्र दर्शन का समय शिमला/मंडी/कांगड़ा के लिए लगभग 8:06–8:10 PM है, जबकि कुल्लू और लाहौल‑स्पीति में 8:15–8:20 PM तक।
🌕 करवा चौथ की विस्तृत कथा
बहुत समय पहले, एक नगर में एक साहूकार रहते थे, जिनके सात बेटे और एक सुंदर बेटी थी, जिसका नाम करवा था। सभी भाई अपनी बहन से अत्यंत प्रेम करते थे और उसकी हर बात का ध्यान रखते थे। करवा अपने सौम्य स्वभाव और धर्मपरायणता के लिए प्रसिद्ध थी।
वह विवाह योग्य हुई और उसका विवाह एक राजा से हुआ। विवाह के बाद करवा अपने पति के सुख-शांति और लंबी उम्र की कामना के लिए करवा चौथ का व्रत रखना चाहती थी। अपने पहले व्रत के दिन, वह अपने मायके आई। सूर्योदय से पहले उसने सर्गी ग्रहण की और पूरे दिन निर्जला उपवास रखा।
शाम के समय, करवा को चंद्रमा का दर्शन करना था। वह व्याकुल हो उठी और आस-पड़ोस के लोगों ने उसे देखने के लिए जमा होना शुरू कर दिया। इस बीच, उसके भाई, जो उसकी भलाई चाहते थे, ने एक छल रचा। उन्होंने एक पीपल के पेड़ में दीपक का प्रतिबिंब दिखाया और उसे भ्रमित किया कि चंद्रमा निकल आया है। करवा ने चंद्रमा के दर्शन कर व्रत खोल दिया। जैसे ही उसने पहला व्रत खोला, वह छींक पड़ी। दूसरे व्रत में बाल निकले और तीसरे में राजा के मरने की खबर आई। वह शोकाकुल हो गई।
करवा अत्यंत दुःखी हो गई और देवी पार्वती की भक्ति में लीन हो गई। उसने कई वर्षों तक कठोर व्रत, तपस्या और पूजा की। उसकी भक्ति और तपस्या देखकर देवी पार्वती प्रसन्न हुईं और उसके पति को जीवित किया।
तब से, विवाहित महिलाएं इस दिन अपने पति की लंबी उम्र, सुख और समृद्धि के लिए करवा चौथ का व्रत करती हैं। इस व्रत में केवल धार्मिक भक्ति ही नहीं, बल्कि पति-पत्नी के बीच विश्वास, प्रेम और समर्पण का संदेश भी निहित है।
व्रत के प्रमुख संदेश
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समर्पण और त्याग: उपवास और कठोर तपस्या से यह सिखाया जाता है कि लक्ष्य और प्रेम के लिए अनुशासन जरूरी है।
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सहनशीलता: वीरावती की कथा में दिखाया गया कि विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य और समर्पण बनाए रखना चाहिए।
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परिवार और प्रेम का महत्व: यह व्रत पति-पत्नी और परिवार के बीच प्रेम, निष्ठा और समझ का प्रतीक है।
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आध्यात्मिक शक्ति: व्रत और भक्ति के माध्यम से व्यक्ति आत्मिक शक्ति और मानसिक स्थिरता प्राप्त करता है।
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