मंडी का छतहीन मंदिर, जहां देवी के चमत्कार से बर्फ भी नहीं जमती
मंडी जिले का शिकारी देवी मंदिर, छतहीन और रहस्यमयी, देवी शिकारियों की देवी, प्राकृतिक सौंदर्य और आस्था का प्रमुख केंद्र।
शिकारी देवी मंदिर: हिमाचल का रहस्यमयी और छतहीन देवस्थान
मंडी, हिमाचल प्रदेश: हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में स्थित शिकारी देवी मंदिर अपने अनोखे और रहस्यमयी स्वरूप के कारण भक्तों और पर्यटकों के लिए खास आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। समुद्रतल से लगभग 3,359 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर शिकारी शिखर पर स्थित है, जिसे स्थानीय लोग मंडी का “मुकुट” भी कहते हैं। मंदिर की अनोखी विशेषता यह है कि यह पूरी तरह छतहीन है और कहा जाता है कि देवी की इच्छा से यहां की छत पर कभी बर्फ नहीं जमती।
इतिहास और पौराणिक महत्व
स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, यह मंदिर महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि पांडवों ने अपने वनवास के दौरान इस स्थान पर तपस्या की थी। वहीं, महर्षि मार्कंडेय ने भी वर्षों तक यहां साधना और ध्यान किया। मंदिर के आसपास के क्षेत्र में कई पौराणिक कहानियां प्रचलित हैं, जिनमें देवी शिकारी की शक्तियों और चमत्कारिक दृष्टियों का विवरण मिलता है।
मंदिर की छत न होने का रहस्य भी भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र है। स्थानीय लोगों का मानना है कि देवी शिकारी आकाश के नीचे रहना पसंद करती हैं, इसलिए मंदिर की छत पर बर्फ जमती ही नहीं। यही कारण है कि यह मंदिर हिमाचल में अद्वितीय माना जाता है।
देवी शिकारी का महत्व
शिकारी देवी को शिकारियों की देवी माना जाता है। प्राचीन काल में शिकारियों ने यहां आकर देवी से अपने शिकार में सफलता की कामना की। समय के साथ यह देवी सुरक्षा, समृद्धि और आशीर्वाद की देवी के रूप में स्थानीय लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान बनाने लगी।
आज भी भक्त यहां आकर अपने परिवार की सुरक्षा, व्यवसाय में सफलता और जीवन में खुशहाली की कामना करते हैं। मंदिर में नवरात्रि और दशहरा के अवसर पर विशेष पूजा और मेले आयोजित होते हैं, जिसमें दूर-दूर से भक्त दर्शन के लिए आते हैं।
स्थान और ट्रैकिंग अनुभव
मंदिर तक पहुंचने के लिए जंजैहली से लगभग 18 किलोमीटर या करसोग से 21 किलोमीटर की ट्रैकिंग करनी पड़ती है। ट्रैकिंग मार्ग घने देवदार और चीड़ के जंगलों से होकर गुजरता है। रास्ते में कई दुर्लभ वन्यजीव और पक्षियों को देखा जा सकता है।
शिखर से दिखाई देने वाला हिमालय का नज़ारा, आसपास की घाटियां और गांव, भक्तों और पर्यटकों को एक अद्भुत अनुभव देते हैं। यही कारण है कि यह मंदिर धार्मिक आस्था और पर्यावरणीय पर्यटन का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है।
सांस्कृतिक और धार्मिक पहलू
स्थानीय लोगों के लिए यह मंदिर सिर्फ पूजा स्थल नहीं बल्कि उनकी कुल देवी भी है। देवी की पूजा के दौरान विशेष भजन, कथा वाचन और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। पुराने समय में यहां बकरियों और भेड़ों की बलि चढ़ाने की परंपरा थी, जो आज सांस्कृतिक कार्यक्रमों और रिवाजों में बदल चुकी है।
मंदिर के आसपास के क्षेत्र में कई छोटे-छोटे छिपे हुए मंदिर और देवस्थान भी हैं, जो प्राकृतिक सौंदर्य और आस्था का प्रतीक हैं।
सफर की योजना और मौसम
मंदिर पूरे साल खुला रहता है। गर्मी के मौसम में ट्रैकिंग करना आसान और सुखद होता है। सर्दियों में भारी बर्फबारी और ठंड के कारण यात्रा कठिन होती है, लेकिन बर्फ से ढकी घाटियां और हिमालय के दृश्य अत्यंत आकर्षक होते हैं।
भक्त और पर्यटक मंदिर तक पहुंचने के लिए स्थानीय गाइडों की सहायता लेते हैं। साथ ही ट्रैकिंग के दौरान सुरक्षा और पर्यावरणीय नियमों का पालन करना आवश्यक है।
निष्कर्ष
शिकारी देवी मंदिर न केवल हिमाचल की धार्मिक धरोहर है, बल्कि यह प्राकृतिक सुंदरता, साहसिक ट्रैकिंग और सांस्कृतिक अनुभव का भी अद्वितीय संगम प्रस्तुत करता है।
यह मंदिर उन लोगों के लिए खास है जो आध्यात्मिक शांति, प्राकृतिक अनुभव और रहस्यमयी कथाओं की खोज में हैं। मंडी के इस छतहीन और रहस्यमयी मंदिर का अनुभव जीवनभर याद रहने वाला है।
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