चीन ने ट्रंप को दिया जवाब! 90 दिन की ट्रेड ट्रूस टूटी
ट्रंप की 90 दिन की ट्रेड ट्रूस टूटी, चीन ने दुर्लभ धातुओं पर एक्सपोर्ट कंट्रोल लगाया। अमेरिका ने भी बढ़ाए टैरिफ, बाजारों में मची हलचल।

🔹 अमेरिका-चीन ट्रेड ट्रूस टूटी, तनाव फिर बढ़ा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की “डीलमेकिंग डिप्लोमेसी” एक बार फिर खतरे में है। मई में हुई 90 दिन की ट्रेड ट्रूस अब टूट गई है, जब चीन ने दुर्लभ धातुओं और अन्य रणनीतिक सामग्रियों पर नए एक्सपोर्ट कंट्रोल्स की घोषणा कर दी।
इस कदम के जवाब में ट्रंप ने चीन से आने वाले सामान पर 100% तक नए टैरिफ लगाने की चेतावनी दी। इसके बाद अमेरिकी शेयर बाजारों में जबरदस्त गिरावट देखने को मिली, जो पिछले छह महीनों में सबसे बड़ी मानी जा रही है।
🔹 क्या हुआ था ट्रंप-शी समझौते में?
ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मई में एक 90-दिन की “ट्रेड ट्रूस” हुई थी। इस दौरान दोनों देशों ने एक-दूसरे पर नए टैरिफ या एक्सपोर्ट बैन लगाने से परहेज़ किया।
चीन ने अपनी महत्वपूर्ण खनिजों पर बैन हटाया था, जबकि अमेरिका ने सेमीकंडक्टर और AI चिप्स पर प्रतिबंधों को अस्थायी रूप से रोका था।
लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, अमेरिकी किसानों में नाराज़गी बढ़ने लगी क्योंकि चीन ने अमेरिकी सोयाबीन आयात लगभग रोक दिए थे।
🔹 नई घोषणाओं से बाजारों में हड़कंप
चीन के हालिया एक्सपोर्ट कंट्रोल्स की घोषणा के कुछ घंटों बाद ट्रंप ने Truth Social पर लगभग 500 शब्दों का पोस्ट डालते हुए “मासिव इंक्रीज़” की धमकी दी। इसके बाद डॉव जोन्स और नैस्डैक दोनों में तेज गिरावट आई।
Nvidia जैसी टेक कंपनियों के शेयरों में 5% तक की गिरावट दर्ज हुई।
🔹 क्या होगा अब आगे?
ट्रंप और शी जिनपिंग की मुलाकात इस महीने दक्षिण कोरिया में तय है, जहां दोनों देशों के बीच नए व्यापार समझौते पर चर्चा होनी थी।
हालांकि, ट्रंप ने संकेत दिया है कि अगर चीन अपनी पाबंदियां नहीं हटाता, तो वह यह मीटिंग रद्द भी कर सकते हैं।
विश्लेषकों के अनुसार, चीन अब पहले से कहीं अधिक आत्मनिर्भर और रणनीतिक रूप से तैयार है। “यह अब ट्रंप 1.0 वाला दौर नहीं है,” एशिया सोसाइटी की वरिष्ठ उपाध्यक्ष वेंडी कटलर ने कहा।
🔹 विशेषज्ञों की राय
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अमेरिका छोटे देशों के साथ द्विपक्षीय सौदे आसानी से कर सकता है, लेकिन चीन जैसे बड़े देश के साथ टकराव की स्थिति में सामूहिक वैश्विक नीति ही प्रभावी होती है।
पूर्व अमेरिकी वाणिज्य अधिकारी नज़ाक निकाख़तर के अनुसार, “अगर आप केवल ‘हैंडशेक डील्स’ पर भरोसा करते हैं, तो दूसरा पक्ष आपकी प्रतिक्रिया का आकलन करता है — और अगर उसे लगे कि आप झुक जाएंगे, तो समझौता टूटना तय है।”
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