श्री राम कथा मानव के हृदय में भक्ति, वैराग्य और प्रेम का बीज करती है रोपित
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा पालिटेक्निक कॉलेज ऑडियोटोरियम कांगडा में अयोजित सात दिवसीय श्री राम कथा
सुमन महाशा। कांगड़ा
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा पालिटेक्निक कॉलेज ऑडियोटोरियम कांगडा में अयोजित सात दिवसीय श्री राम कथा के प्रथम दिवस की सभा में संस्थापक व संचालक गुरुदेव सर्व आशुतोष महाराज के परम शिष्य कथा व्यास डॉ. सर्वेश्वर ने उपस्थित भगवद प्रेमियों को कथा का रसपान करवाते हुए कहा कि राम कथा मानव के अंदर भक्ति, वैराग्य, प्रेम का बीज रोपित करती है। त्रेता युग से लेकर आज तक श्री राम जी सबके प्रिय बने हैं।
यही कारण है कि विश्व भर में 300 से अधिक रामायणों के साक्ष्य उपलब्ध हैं। भारत देश में उत्तर से लेकर दक्षिण तक, पूर्व से लेकर पश्चिम तक श्री राम की लोकप्रियता का कोई पारावार नहीं है। केवल भारत ही क्यों, श्री राम की लोकप्रियता तो देश-प्रदेश की सब सीमाओं का अतिक्रमण विदेशियों के हृदयों को भी झंकृत कर गई। यहीं तो कारण है कि तिब्बत में तिब्बती रामायण, तुर्किस्तान में खोतानी रामायण, थाईलैंड में रामकियेन, बर्मा में रामवत्थु, नेपाल में भानुभक्त कृत रामायण, कम्बोडिया में रामकर, इंडोनेशिया में ककबिनरामायण, जावा में खमैर रामायण प्रचलित है। श्री राम की इस अनंत लोकप्रियता का कारण है उनकी मर्यादा और उनके आदर्श। आज उन्हीं आदर्शों का अभाव है कि मानव पतन की गहरी खाईयों में धँसता चला जा रहा है। प्रेम, दया, त्याग, सौहार्द्र जैसे शब्द केवल शब्दकोश तक ही सिमट कर रह गए हैं। आज प्रॉपर्टी के लिए एक भाई अपने सगे भाई का दुश्मन है। पुत्र पिता के रक्त का प्यासा है। वृद्ध होने पर माता पिता को उन्हीं की संतान वृद्धाश्रम में भेज देती है। ये सब दर्शाता है श्री राम की धरती से उनके आदर्शों का विघटन। अतः आज ज़रूरत है पुनः उन्हीं आदर्शों को स्थापित करने की। इसके लिए केवल एकमात्र साधन श्री राम कथा है। प्रभु की यह पावन कथा ही आज समाज के पुनरुत्थान का मार्ग है। श्री राम की कथा समाज के हर वर्ग को जीवन जीने का सही मार्ग दिखाती है। सात दिवसों की यह कथा प्रभु के जीवन के ऐसे ही दिव्य रहस्यों को हमारे समक्ष रखेगी।
इसी अवसर पर शहर के कुछ गणमान्य अतिथि अशोक पाठक, रविंद्र शर्मा, रंजीत योगी, बीपी शर्मा, नवनीत शर्मा, राकेश कथूरिया, मोनिका कथूरिया, व शहर के गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे। साथ ही इस अवसर पर स्वामी मेघानन्द, महात्मा अमृत, महात्मा नरेश ने सुमधुर चौपाईयों और भजनों का गायन किया।
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