लाखों की भीड़ खींच लाने वाली परंपरा, जिसे जानकर दंग रह जाएंगे!
सुलह (पालमपुर, कांगड़ा) गुग्गा जाहरवीर की आस्था का प्रमुख केंद्र है, जहाँ आज भी उनकी गाथा, मेला और मंदिर लोकपरंपराओं को जीवित रखते हैं।

📜 सुलह का इतिहास
सुलह प्राचीन समय से व्यापार मार्ग पर बसा एक महत्वपूर्ण स्थल रहा है। यहां से लोग पालमपुर से ज्वालामुखी, कांगड़ा और बैजनाथ की ओर जाया करते थे। ब्रिटिश काल में भी यह इलाका चाय की खेती और अनाज उत्पादन के लिए प्रसिद्ध रहा। स्थानीय मान्यता के अनुसार इसी धरती पर गुग्गा जाहरवीर का आशीर्वाद सदियों से बना हुआ है और यही वजह है कि सुलह केवल व्यापार या खेती के लिए ही नहीं, बल्कि आस्था का केंद्र भी माना जाता है।
🌿 सुलह और गुग्गा जी की पहचान
धौलाधार की हरी भरी गोद में बसा सुलह आज गुग्गा जाहरवीर की आस्था से जुड़ी पहचान के लिए भी जाना जाता है। यहां के खेत, चाय बागान और प्राकृतिक सुंदरता तो आकर्षक हैं ही, लेकिन गुग्गा जी से जुड़ी लोककथाएं इस कस्बे को और भी खास बनाती हैं।
🐍 संकट और गुग्गा जाहरवीर की कथा
कहा जाता है कि सदियों पहले इस क्षेत्र में महामारी और सांपों का प्रकोप फैल गया था। लोग भय और कष्ट में डूब गए थे। तभी गुग्गा जाहरवीर की कृपा से लोगों को राहत मिली और जीवन सामान्य हुआ। तभी से इस धरती पर गुग्गा जी की पूजा और आस्था का सिलसिला शुरू हुआ जो आज भी उतनी ही श्रद्धा से जारी है।
🙏 छतरी, आलिया पेड़ और गुग्गा जी
सुलह क्षेत्र में गुग्गा जाहरवीर की छतरी विशेष रूप से प्रसिद्ध है। श्रद्धालु यहां आलिया नामक पेड़ की परिक्रमा करते हैं और छतरी पर चूड़ियां, डोरियां और नारियल चढ़ाते हैं। यह मान्यता है कि ये सभी अर्पण गुग्गा जी को समर्पित होते हैं और उनसे मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
🎉 रक्षाबंधन से जन्माष्टमी तक का मेला
हर साल गुग्गा जाहरवीर के सम्मान में सुलह और आसपास के गांवों में रक्षाबंधन से लेकर जन्माष्टमी तक भव्य मेला आयोजित होता है। इस दौरान श्रद्धालु नंगे पांव चलकर गुग्गा जी के मंदिर पहुंचते हैं, छतरियां उठाते हैं और गांव गांव जाकर गुग्गा गाथा गाते हैं। यह मेला धार्मिक आस्था के साथ साथ सांस्कृतिक उत्सव का भी प्रतीक बन चुका है।
🌌 गुग्गा जी और सुलह का रहस्य
सुलह सिर्फ एक कस्बा नहीं, बल्कि गुग्गा जाहरवीर की आस्था और विश्वास की जिंदा मिसाल है। यहां की गाथाएं, मेले और परंपराएं आज भी वही रहस्य समेटे हुए हैं जिन्होंने सदियों पहले इस जगह को खास बना दिया। गुग्गा जी की कृपा से ही सुलह की धरती आज भी भक्तों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र बनी हुई है।
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