टारना माता मंदिर: मंडी की ऊंचाइयों में छिपी चमत्कारों की कथा
मंडी की ऊंचाई पर स्थित तरणा माता मंदिर देवी शक्ति का अद्भुत धाम है। यहां से पूरे शहर का दृश्य दिखता है और लोक आस्था से जुड़ी प्राचीन कथा आज भी जीवित है।

🌺 टारना माता मंदिर – मंडी की ऊंचाई पर बसा श्रद्धा का पवित्र धाम
स्थान-परिपेक्ष और संक्षेपत: क्या है?
टारना माता मंदिर मंडी नगर के ऊपर टारना (Tarna) हिल की चोटी पर स्थित एक प्रमुख शक्तिपीठ/मंदिर है। यह श्यामाकाली (Shyama Kali / Shyama Devi) या टारना देवी को समर्पित माना जाता है और पहाड़ी की ऊंचाई से शहर व घाटी का विहंगम दृश्य मिलता है। मंदिर तक पहूंचने के लिए सीढ़ियों/पगडंडियों से चढ़ना पड़ता है; आगंतुक अक्सर इसे शहर से "ऊपर की ओर" सब्जेक्टिव आध्यात्मिक अनुभव के रूप में बताते हैं।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष
लोकस्मृति और स्थानीय लेख कहती हैं कि यह मंदिर राजा श्याम सेन/शाम सेन ने 16वीं–17वीं शताब्दी के आसपास बनवाया था। अधिकांश आधुनिक पर्यटन/स्थानीय ब्लॉग्स और गाइड इसे 17वीं शताब्दी का मानते हैं और निर्माण का श्रेय राजा श्याम सेन को देते हैं। परन्तु कुछ स्रोत/लोककथाएं समयांतराल में भिन्नता दिखाती हैं (कभी 16वीं का उल्लेख भी मिलता है)। इसलिए सटीक निर्माण-तिथि पर साक्ष्य (इन्स्क्रिप्शन/आर्काइव) देखने की आवश्यकता है। मूल मिथक/कथा: पारंपरिक कहानी में देवी ने राजा को स्वप्न दर्शन देकर यहां मंदिर बनवाने का आदेश दिया—यह तरह-तरह के लोकश्राव्यों में बार-बार आता है। इस तरह की "राजा-देवी दर्शन" कथाएं हिमाचली शक्तिपीठों में सामान्य हैं और मंदिर की वैधता/पवित्रता को स्थानीय समाज में पुख्ता करती हैं।
स्थापत्य और मूर्तिकला
बाहरी संरचना: हिलटॉप पर बने मंदिरों की परंपरा के अनुरूप यह भी पत्थर व लकड़ी के मिश्रण में बना दिखता है — कच्ची पत्थर की नींव, पक्की प्लेटफॉर्म और रंगीन गोपुर/डोम। आधुनिक चित्रों में मंदिर का गुंबद लाल/रंगीन पेंट में निखरा दिखता है, और परिसर में प्लेटफ़ॉर्म/चौक है।
गर्भगृह व मूर्ति: मंदिर में मुख्य देवी का स्वरूप
(श्यामाकाली/Tarna Devi) पारंपरिक 'काली/श्याम' स्वरूप के निकट है — अंधेरी/श्याम वर्णकृष्ण प्रतिमा, कभी-कभी त्रिमुखी प्रस्तुति या किसी पारिवारिक देवता के साथ आए रंगीन आभूषण दिखते हैं। अंदर की अलंकरण और पीछे के नक्काशीदार पैनल स्थानीय कारीगरों की शैली दिखाते हैं। (इन्हें आप मंदिर के अंदर के फोटोस और स्थानीय लेखों में देख सकते हैं)।
पूजा-विधि, उत्सव और लोकमान्यताएं
मुख्य पर्व/श्रद्धा केंद्र: नवरात्रियों (विशेषकर शारदीय नवरात्र) में मंदिर पर भारी भीड़ रहती है; लोग मनोकामना लेकर आते हैं और माना जाता है कि सच्चे मन से माँ से मांगा हुआ पूर्ण होता है। पहले के समयों में नवरात्रि मेले और लोक-समारोह की भी परंपरा रही है। स्थानीय रीति-रिवाज: मंत्रोच्चारण, हवन, पुष्प-अर्पण, चोला/वर्ग चढ़ाना जैसी परंपराएं सामान्य हैं। कुछ जगहों पर त्यौहारों के दौरान स्थानीय नृत्य/भोजन तथा भक्तों के सामूहिक भजन का आयोजन भी होता रहा है।
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