गाय का दूध और देवी का चमत्कार — सोहनी देवी मंदिर की अद्भुत कहानी
घुमरवीं के पास सोहनी देवी मंदिर की प्राचीन कथा, नवरात्रि उत्सव और प्राकृतिक सौंदर्य के साथ यहां आने वाले भक्तों की श्रद्धा।

घुमरवीं, बिलासपुर।
हिमाचल की पहाड़ियों में छुपा सोहनी देवी मंदिर न केवल श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि यह स्थान स्थानीय संस्कृति और धार्मिक विश्वास का जीवंत प्रतीक भी है। यह मंदिर घुमरवीं कस्बे से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर, पहाड़ी की चोटी पर स्थित है और चारों ओर हरे-भरे जंगल और मनोहारी दृश्य इसे भक्तों और पर्यटकों के लिए अद्भुत बनाते हैं।
🔹 जन्मकथा और लोकविश्वास
लोककथाओं के अनुसार, सदियों पहले एक गांववासी ने पहाड़ी पर एक सफेद गाय को लगातार दूध बहाते देखा। वह दूध जमीन पर गिरता और जैसे भूमि स्वयं उस दूध से सींची जा रही हो। लोग इसे दिव्य चिह्न मानने लगे और महसूस किया कि इस स्थान पर कोई पवित्र शक्ति निवास करती है।
धीरे-धीरे इस स्थान पर देवी की मूर्ति स्थापित की गई और स्थानीय लोग इसे परिवार देवी के रूप में मानने लगे। गाय और दूध की घटना ने मंदिर के आध्यात्मिक महत्व को एक प्राकृतिक और चमत्कारिक रूप दिया, जो आज भी भक्तों को आकर्षित करता है।
🔹 पुनर्निर्माण और स्थानीय सहभागिता
मंदिर की प्राचीन मूर्ति समय के साथ क्षतिग्रस्त हो गई थी। 1980 में स्थानीय लोगों की मदद से मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ। इस प्रक्रिया में हर परिवार ने योगदान दिया, जिससे यह मंदिर न केवल धार्मिक बल्कि सामुदायिक भावना का प्रतीक बन गया।
🔹 उत्सव और भक्ति का केंद्र
विशेष अवसरों जैसे नवरात्रि और स्थानीय यात्रा उत्सव में मंदिर में भजन-कीर्तन, रात्री जागरण और सामूहिक पूजा का आयोजन होता है। इस समय मंदिर और आसपास की बस्तियों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। भक्तों का मानना है कि इस समय मंदिर की आध्यात्मिक ऊर्जा और भी प्रबल हो जाती है।
🔹 प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक अनुभव
मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसकी प्राकृतिक सुंदरता भी अद्वितीय है। हरियाली से घिरी पहाड़ियां, जंगल और चट्टानों से घिरा यह स्थल भक्तों और पर्यटकों दोनों को शांति और आत्मिक अनुभव प्रदान करता है। स्थानीय लोग बताते हैं कि मंदिर में आने पर मानसिक तनाव दूर होता है और आस्था और भक्ति की अनुभूति होती है।
सोहनी देवी मंदिर की यह कहानी यह दर्शाती है कि किसी भी स्थान का पवित्र होना केवल मूर्ति या इमारत से नहीं, बल्कि वहां मौजूद आस्था और लोकविश्वास से तय होता है।
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