महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करने में स्वयं सहायता समूह का महत्वपूर्ण योगदान : पवन शर्मा
पालमपुर के टी बड होटल परिसर में हिमाचल फसल विविधिकरण प्रोत्साहन परियोजना की ओर से स्थानीय उत्पादों के मूल्य संवर्द्धन एवं बाजार की उपलब्धता विषय पर कार्यशाला आयोजित की गई। दो दिवसीय कार्यशाला का पहले दिन उद्घघाटन करने के बाद उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक डॉ पवन शर्मा ने कहा है कि स्वयं सहायता समूह महिलाओं के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

मनोज धीमान। पालमपुर
पालमपुर के टी बड होटल परिसर में हिमाचल फसल विविधिकरण प्रोत्साहन परियोजना की ओर से स्थानीय उत्पादों के मूल्य संवर्द्धन एवं बाजार की उपलब्धता विषय पर कार्यशाला आयोजित की गई। दो दिवसीय कार्यशाला का पहले दिन उद्घघाटन करने के बाद उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक डॉ पवन शर्मा ने कहा है कि स्वयं सहायता समूह महिलाओं के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का यह अब तक का सबसे बड़ा प्रमाणित जरिया है। स्वयं सहायता समूहों की परिकल्पना सबसे पहले वर्ष 1970 के दशक में सामने आई थी जब महिलाओं के समूह के रूप में सेवा नामक संस्था का गठन किया गया था। इसके बाद अब पूरे देश में लाखों के हिसाब से स्वयं सहायता समूह काम कर रहे हैं। परियोजना की पहल की तारीफ करते हुए डॉ पवन शर्मा ने कहा प्रदेश में वर्तमान में सक्रिय स्वयं सहायता समूहों के उत्पादों की वैल्यू एडिशन करके उन्हें बाजार देने की दिशा में जाइका एचपीसीडीपी बाजार की तमाम शक्तियों और अनुसंधान से सम्बंधित सभी एजेंसियों को एक मंच पर लाने के लिए जो अध्ययन कर रहा है। वह न केवल सामान्य तौर पर स्वयं सहायता समूहों के लिए लाभदाई होगा बल्कि परियोजना में जुड़ने जा रहे कुल 25000 किसानों में आने वाले दौर में स्थापित होने वाले समूहों के कृषि आधारित व्यावसायिक उत्पादों को उचित बाजार देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा।
डॉ पवन शर्मा ने कहा कि इस प्रयास से अब तक कृषि व्यवसाय से जुड़ी तमाम सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में सामने आए कड़वे अनुभवों से छुटकारा पाने में मदद मिलेगी और हम कृषि आधारित उत्पादों के जरिये किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ सकते हैं। अपने संबोधन में परियोजना निदेशक डॉ सुनील चौहान ने कहा कि दो दिन का यह अनुसंधान और अध्ययन आने वाले समय में परियोजना में जुड़ने वाले 25000 किसानों के बीच से बनने वाले महिला कृषकों के स्वयं सहायता समूहों के व्यवसाय को बेहतर करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा, क्योंकि इससे पता चल सकेगा कि स्वयं सहायता समूहों की ओर से अब तक बनाये जा रहे मूल्य वर्धित उत्पादों का स्तर क्या है। क्या यह बाजार की मांग के अनुसार बनाए या पैदा किये जा रहे हैं। ऐसे कौन से उत्पाद हैं जो अब तक अछूते हैं? इसके बाजार की सम्भवनायें कहाँ हैं, कैसे इनका दोहन हो सकता है। उन्होंने बताया कि आईएचबीटी पालमपुर और कृषि विवि पालमपुर के विशेषज्ञों के यहां से तमाम उत्पादों के मूल्य संवर्धन की दिशा में चल रहे प्रयासों को भी इसमें शामिल किया जाएगा ताकि तकनीक और विज्ञान के अत्याधुनिक अनुभवों को भी स्वयं सहायता समूहों के साथ सांझा किया जाए।
कार्यशाला में विषय आधारित व्याख्यानों में नई दिल्ली स्थित एक एनजीओ लीडर डॉ निवेदिता नारायण ने स्वयं सहायता समूहों के लिये बाजार की प्रारंभिक उपलब्धतता और पैकेजिंग की जरूरत पर प्रकाश डाला। कृषि विवि पालमपुर की फ़ूड साइंस प्रोफ़ेसर डॉ अनुपमा संदल ने स्थानीय कृषि आधारित उत्पादों के वैल्यू एडिड प्रोडक्ट्स तैयार करने के तौर तरीकों, तकनीकों और इनसे जुड़े पौष्टिक तत्त्वों की प्रचुरता पर उपस्थित स्वयं सहायता समूहों को विस्तृत जानकारी दी। कार्यक्रम को धर्मशाला के उद्यमी विकास सरीन और बैजनाथ निवासी सफल उद्यमी एवं पूर्व जिला परिषद सदस्य कामरेड अक्षय जसरोटिया ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम का संचालन कार्यशाला की समन्वयक डॉ सोनिया मिन्हास ने किया। इस अवसर पर डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ रविन्द्र चौहान, डॉ योगेंद्र कौशल, डॉ अनूप कतना, डॉ राजेश, डॉ संतोष गुप्ता समेत पूरे प्रदेश भर से आये बीपीएमयू भी मौजूद थे।
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