जल है तो कल के नारों से जल संकट के प्रति किया जागरूक
पॉलिटेक्निक कॉलेज ऑडियोटोरियम कांगड़ा में चल रही सात दिवसीय श्री राम कथा के चतुर्थ दिवस कथा पंडाल में श्री राम विवाहोत्सव धूमधाम से मनाया गया।

सुमन महाशा। कांगड़ा
पॉलिटेक्निक कॉलेज ऑडियोटोरियम कांगड़ा में चल रही सात दिवसीय श्री राम कथा के चतुर्थ दिवस कथा पंडाल में श्री राम विवाहोत्सव धूमधाम से मनाया गया। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक एवं संचालक श्री आशुतोष महाराज जी के परम शिष्य कथा व्यास डॉ. सर्वेश्वर जी ने गंगा अवतरण की कथा सुनाते हुए भक्तों को जल का महत्त्व बताकर पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित किया। संस्थान के पर्यावरण सम्बन्धी प्रकल्प "संरक्षण" के अंतर्गत "इक अच्छी आदत" व "हिमालय बचाओ" मुहिम का ज़िक्र करते हुए स्वामी जी ने बताया संस्थान रैलियों, नुक्कड़-नाटक इत्यादि के द्वारा जनमानस को पर्यावरण बचाने के लिए सदा से ही संवेदनशील बनाता आया है। पुरे पंडाल में जल है तो कल के नारो से जल संकट के प्रति जागरूक किया गया।
आगे सीता स्वयंवर प्रसंग पर प्रकाश डालते हुए स्वामी ने कहा कि महाराज जनक ने अपनी पुत्री सीता के विवाह के लिए एक शर्त्त रखी कि जो भी भगवान शिव के धनुष को तोड़ेगा उसी के साथ उनकी पुत्री का विवाह होगा। देश-विदेश से राजा, महाराजा, राजकुमार, देवतागण और राक्षस धनुष-यज्ञ में पहुँचे। लेकिन उसे तोड़ना तो दूर कोई उसको तिनके की तरह हिला भी नहीं पाया। तब मुनिवर विश्वामित्र जी ने प्रभु श्री राम को धनुष तोड़ने की आज्ञा दी। विश्वामित्र जी ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने की जगह धनुष तोड़ने की बात कही। यह धनुष प्रतीक है अहंकार का और अहंकार का टूट जाना ही अच्छा है। वे हमें समझाना चाहते हैं कि अहंकार को बढ़ाना नहीं चाहिए अपितु इसे तोड़ देना चाहिए क्योंकि यह अहंकार ही भक्त और भगवान में दूरी पैदा करता है। महाराज जनक की सभा में बहुत से अभिमानी राजा पहुँचे थे जिन्होंने कुछ भी नहीं किया फिर भी वे सिर उठाए बैठे थे लेकिन प्रभु श्री राम ने इतने बड़े कार्य को संपन्न करने के बाद भी विनम्रता का परिचय दिया। प्रभु अपने चरित्र से हमें यह समझाना चाहते हैं कि मनुष्य को कभी भी किसी कार्य में सफलता मिलने पर अहंकार नहीं करना चाहिए। उसे झुककर, विनम्र भाव से चलना चाहिए।
इसी अवसर पर श्री श्याम वर्मा, समुंत वर्मा, गोतम मलहोत्रा, दिनेश वस्सी,रजनी, रेणु, पुजा सोनी, पंकज, सुदशन चौधरी आदि व शहर की गणमान्य अतिथि तथा भारी संख्या में लोग उपस्थित रहे । महात्मा अमृत, महात्मा नरेश, महात्मा वरिंदर, स्वामी मेगानंद आदि ने सुमधुर चौपाईयों और भजनों का गायन किया कथा को विराम प्रभु की पावन आरती से दिया गया ।
What's Your Reaction?






