नेपाल का मौजूदा संकट: आखिर ज़िम्मेदार कौन?
नेपाल का मौजूदा संकट केवल राजनीति की नाकामी नहीं, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही अधूरी विरासत का परिणाम भी माना जा रहा है।

हर पीढ़ी ने अपने समय की परिस्थितियों के हिसाब से संघर्ष और उपलब्धियाँ हासिल कीं, लेकिन साथ ही कई अधूरी चुनौतियाँ भी अगली पीढ़ी के लिए छोड़ दीं। नेपाल की कहानी भी इन्हीं पीढ़ीगत उतार-चढ़ाव से गुजरती है। साइलेंट जेनरेशन ने राजशाही और कठिन राजनीतिक हालात देखे, बेबी बूमर्स ने लोकतंत्र की पहली हलचल और बदलाव की उम्मीदें जानीं, जनरेशन एक्स ने अस्थिर राजनीति और माओवादी संघर्ष का दौर झेला, वहीं मिलेनियल्स को नया संविधान और लोकतांत्रिक व्यवस्था तो मिली, लेकिन साथ में भ्रष्टाचार और अस्थिरता की विरासत भी। अब जनरेशन ज़ेड और आगे आने वाली अल्फ़ा पीढ़ी एक ऐसे नेपाल में जी रही है, जहाँ उन्हें पलायन, बेरोज़गारी और जलवायु संकट जैसी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। यानी नेपाल का वर्तमान संकट केवल राजनीति की नाकामी नहीं, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही अधूरी विरासत का नतीजा भी है।
🌏 राजशाही से गणराज्य तक: नेपाल का उतार-चढ़ाव भरा सफर
नेपाल का अतीत संघर्ष और बदलावों से भरा रहा है। लंबे समय तक यह देश राजशाही के अधीन रहा, जहाँ जनता की भूमिका बेहद सीमित थी और सत्ता सिर्फ़ शाही परिवार तक सिमटी हुई थी। 1990 के दशक में लोकतंत्र की मांग ने जोर पकड़ा और जनआंदोलनों ने राजशाही की नींव को हिला दिया। इसके बाद माओवादी आंदोलन (1996–2006) ने देश को एक भीषण संघर्ष में झोंक दिया, जिसमें हजारों लोगों की जानें गईं और समाज गहरे जख्मों से भर गया। साल 2008 में नेपाल ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए राजशाही को खत्म किया और खुद को गणराज्य घोषित किया। लेकिन यह नया दौर भी पूरी तरह स्थिरता नहीं ला पाया। 2015 में संविधान लागू होने के बावजूद राजनीतिक असहमति, सत्ता संघर्ष और बार-बार बदलती सरकारों ने विकास और जनता की उम्मीदों को अधूरा छोड़ दिया।
🔥 क्यों सड़कों पर उतरी नेपाल की जनरेशन Z?
नेपाल की जनरेशन Z आज बदलाव की सबसे बड़ी ताक़त बनकर सामने आई है। यह वही पीढ़ी है जिसने बचपन से ही अस्थिर सरकारें, भ्रष्टाचार और बेरोज़गारी का माहौल देखा है। जब नेता सत्ता के लिए बार-बार कुर्सियाँ बदलते रहे, तब युवाओं के सपने टूटते गए। अच्छी शिक्षा के बावजूद उन्हें नौकरी नहीं मिल रही, हज़ारों युवा रोज़गार की तलाश में विदेश पलायन करने को मजबूर हैं। ऊपर से महंगाई और जलवायु संकट ने उनकी परेशानियों को और बढ़ा दिया। यही कारण है कि नेपाल के युवा अब सिर्फ़ नाराज़ नहीं बल्कि खुलकर विरोध कर रहे हैं। वे पारदर्शी राजनीति, रोजगार के अवसर, भ्रष्टाचार-मुक्त शासन और आधुनिक शिक्षा व्यवस्था की मांग कर रहे हैं। उनके भीतर यह गुस्सा इसलिए भी है क्योंकि उन्हें लगता है कि नेताओं ने देश को अपनी सत्ता की लड़ाई का अखाड़ा बना दिया है और जनता की आवाज़ को लगातार नज़रअंदाज़ किया है।
🌟 नेपाल का भविष्य: सुनहरे अवसर या गहरे संकट?
नेपाल का भविष्य आज कई संभावनाओं के चौराहे पर खड़ा है। अगर नेताओं ने समय रहते राजनीतिक स्थिरता और युवाओं की मांगों पर ध्यान दिया, तो देश एक नए विकास पथ पर बढ़ सकता है। पर्यटन, जलविद्युत और कृषि जैसे क्षेत्रों में अपार संभावनाएँ हैं जो नेपाल की अर्थव्यवस्था को मज़बूत बना सकती हैं। लेकिन अगर सत्ता संघर्ष और भ्रष्टाचार का सिलसिला ऐसे ही चलता रहा, तो युवाओं का पलायन और बढ़ेगा, जिससे देश में “ब्रेन ड्रेन” और आर्थिक संकट और गहरा सकता है। जलवायु परिवर्तन भी नेपाल के लिए बड़ी चुनौती है—ग्लेशियर पिघलना, बाढ़ और भूकंप जैसी आपदाएँ देश को असुरक्षित बना रही हैं। ऐसे में आने वाले समय की तस्वीर दोहरी हो सकती है: एक ओर सुनहरे अवसरों से भरा नया नेपाल, और दूसरी ओर संघर्षों से घिरा अस्थिर नेपाल। यह तय करेगा कि आज लिए गए फैसले किस दिशा में ले जाते हैं।
⚖️ नेपाल के नेताओं के साथ जनरेशन Z: सही कदम या जोखिम भरा खेल?
नेपाल की जनरेशन Z ने खुलकर आवाज़ उठाई और विरोध किया, यह कदम कई लोगों को साहसिक और ज़रूरी लगा। उन्होंने भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी और राजनीतिक अस्थिरता जैसी गंभीर समस्याओं के खिलाफ सड़कों पर उतरकर अपनी नाराज़गी जाहिर की। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा विरोध देश में अस्थिरता और तनाव भी बढ़ा सकता है। फिर भी युवा यह संदेश देना चाहते हैं कि अब परिवर्तन की मांग सिर्फ़ शब्दों में नहीं बल्कि सक्रिय प्रयासों में भी दिखनी चाहिए। सवाल यही है कि क्या इस कदम से राजनीतिक नेतृत्व अपनी नीतियों में सुधार करेगा या विरोध केवल अस्थिरता का कारण बनेगा, यह समय ही बताएगा।
“नेपाल की जनरेशन Z ने खुले तौर पर आवाज़ उठाई और विरोध किया।
आपको क्या लगता है, क्या उनका यह कदम सही था? अपनी राय हमें ज़रूर बताएं!”
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