देवभूमि हिमाचल की संस्कृति बचाना जनता की जिम्मेदारी, सरकार की नहीं: यति सत्यदेवानंद सरस्वती
कांगड़ा के जमानाबाद में मां बगलामुखी यज्ञ के समापन पर यति सत्यदेवानंद सरस्वती महाराज ने कहा— देवभूमि की संस्कृति बचाना हिमाचलवासियों का कर्तव्य है।

सुमन महाशा। कांगड़ा
कांगड़ा के गांव जमानाबाद में चल रहे मां बगलामुखी यज्ञ के समापन अवसर पर आयोजित धर्मसभा में यति सत्यदेवानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि देवभूमि हिमाचल प्रदेश की संस्कृति, परंपरा और देवताओं का सम्मान बचाना जनता की जिम्मेदारी है, न कि केवल सरकार की।
🕉️ “देवभूमि की रक्षा स्थायी निवासियों का धर्म”
अखिल भारतीय संत परिषद के हिमाचल, पंजाब और हरियाणा प्रमुख यति सत्यदेवानंद सरस्वती महाराज, जो महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरी के शिष्य हैं, ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में बीते कुछ वर्षों में देव परंपराओं का राजनीतिकरण और देवताओं के अपमान के मामले बढ़े हैं।
उन्होंने कहा—
“जब से राजनैतिक हस्तक्षेप देव उत्सवों में बढ़ा है, तब से हमारी संस्कृति कमजोर होती जा रही है। अब समय आ गया है कि देवभूमि के लोग खुद अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए आगे आएं।”
महाराज ने यह भी कहा कि प्रदेश में ऐसे अधिकारी नहीं होने चाहिए जिन्हें स्थानीय संस्कृति और परंपराओं का ज्ञान न हो।
🪔 गोल्डी चौधरी बोले— अब गाँव का नाम होगा ‘पंचवटी’
यज्ञ संयोजक गोल्डी चौधरी ने बताया कि मां बगलामुखी हवन की पूर्णाहुति के अवसर पर गांव के लोगों ने पुराने नाम “पंचवटी” को पुनः अपनाने का संकल्प लिया है।
उन्होंने कहा कि “पंचवटी” नाम भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा का प्रतीक है, और अब गांव के लोग इसी नाम से अपनी पहचान पुनः स्थापित करेंगे।
“आगामी पंचायत चुनाव में वही प्रतिनिधि आगे बढ़ेंगे जो इस संकल्प के प्रति समर्पित रहेंगे।” — गोल्डी चौधरी
🙏 सामूहिक आहुति और धर्मसंरक्षण का संदेश
इस अवसर पर दिलबाग राय, विनेश चौधरी, अजय, कमरजीत, राजेश चौधरी, सुरजीत चौधरी, सुरेखा देवी, पुष्पा देवी, केसरी देवी, लाजवंती देवी, सारिका देवी, रीना कुमारी, ममता देवी, मिनता देवी, इंदु देवी, मुस्कान सहित बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों ने आहुति देकर धर्म रक्षा का संकल्प लिया।
🌄 निष्कर्ष
मां बगलामुखी यज्ञ के इस आयोजन ने न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान की बल्कि सांस्कृतिक जागरूकता का संदेश भी दिया।
यति सत्यदेवानंद सरस्वती महाराज के संबोधन ने एक बार फिर हिमाचलवासियों को याद दिलाया कि देवभूमि की पहचान उसकी संस्कृति से ही है, और उसकी रक्षा प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।
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