सचिवालय भवन बना कबाड़ खाना, लोगों को होगी परेशानी
धर्मशाला का सचिवालय भवन बदहाल है, जहाँ सरकार और स्थानीय मंत्री नहीं आते। यहाँ के लोगों को कार्यों के लिए शिमला जाना पड़ता है।

ब्यूरो रिपोर्ट। धर्मशाला
यह तस्वीर किसी कबाड़ खाने या स्टोर की नहीं, बल्कि यह है धर्मशाला का सचिवालय भवन। सचिवालय का यह भवन अपनी बदहाली पर बहा रहा है आंसू। पूरी सरकार तो दूर, कांगड़ा के मंत्री भी नहीं आते यहां नजर। जिला कांगड़ा प्रदेश की 15 विधानसभा सीटों के साथ प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है।
कोई कांगड़ा को पर्यटन राजधानी बनाना चाहता है, किसी ने प्रदेश की दूसरी राजधानी का दर्जा दे रखा है, तो किसी ने यहीं से सरकार चलाने का दावा तक भी किया, मगर हकीकत क्या है, लोगों को अपने हर छोटे बड़े काम के लिए शिमला की सडक़ें नापनी ही पड़ती हैं। यहां के लोगों को शिमला न जाना पड़े, शायद इसीलिए यहां सचिवालय बनाया गया था। करोड़ों की इमारत क्या कबाड़ रखने के लिए बनाई गई थी।
आपकों बता दें कि वर्ष 1999 में तत्तकालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने पहले लघु सचिवालय का शिलान्यास किया, जबकि वर्ष 2002 में मिनी सचिवालय धर्मशाला का उद्घाटन किया। वहीं कांग्रेस सरकार से मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने सचिवालय व दूसरी राजधानी का दर्जा धर्मशाला को दिया था।
बताया जाता है कि पूर्व जयराम सरकार के समय भी ये भवन ज्यादातर समय वीरान ही रहा..हां इतना जरूर है कि कभी कबार कांगड़ा के मंत्री उस वक्त नजर आ जाते थे, रंग रोगन भी होता था। हैरानी की बात तो ये है कि जिस भवन में वीरभद्र सरकार के समय रौनक अक्सर देखी जाती थी, वहां पर वर्तमान सरकार तो यहां कभी पूरी नजर ही नहीं आई है। सचिवालय भवन धर्मशाला में मुख्यमंत्री व उप मुख्यमंत्री के कार्यालय भी मौजूद हैं। मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री के कमरे तो बने हुए हैं, बकायदा नेम प्लेट भी लगी है, लेकिन वहां पर कोई भी बैठता हुआ नजर नहीं आता है। जिसके चलते पूरा भवन सुनसान ही नजर आता है।
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