एमसीएम डीएवी कॉलेज कांगड़ा में चल रही त्रि- दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस का हुआ समापन
एमसीएम डीएवी कॉलेज कांगड़ा में चल रही त्रि- दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस का बुधवार को समापन हुआ।

सुमन महाशा। कांगड़ा
एमसीएम डीएवी कॉलेज कांगड़ा में चल रही त्रि- दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस का बुधवार को समापन हुआ। इस अवसर पर हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से पधारे प्रोफेसर महावीर सिंह ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की। कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ बलजीत सिंह पटियाल ने मुख्य अतिथि का विधिवत रूप से शॉल और टोपी पहनकर औपचारिक स्वागत किया।
इस दौरान मुख्य अतिथि ने कहा कि डीएवी कॉलेज कांगड़ा के साथ उनका भावनात्मक संबंध है और जब भी वह डीएवी महाविद्यालय कांगड़ा आते हैं तो परिवार की तरह अनुभूति होती है। जिस तरह डीएवी कांगड़ा ने अकादमिक क्षेत्र में अग्रणी स्थान बरकरार रखा है । उसके लिए महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ बलजीत सिंह पटियाल तथा उनका पूरा स्टाफ बधाई का पात्र है और उन्होंने कहा कि उन्हें आशा है कि भविष्य में भी इस तरह के आयोजन इस महाविद्यालय की गरिमा में चार चांद लगाते रहेंगे ।
कॉन्फ्रेंस के अंतिम दिन आमंत्रित वक्ता के रूप में केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला से डॉ खेमराज शर्मा उपस्थित रहे । उनका मुख्य विषय था-
सांस्कृतिक परम्परागतता को प्रतिध्वनित करने के लिए नए प्रतिमान के रूप में अनुवाद: चुनिंदा हिमाचली लघु कथाओं का अध्ययन। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि अनुवाद क्षेत्रीय साहित्य में निहित सांस्कृतिक परम्परागतता के सार को संरक्षित करने और प्रसारित करने के लिए एक सशक्त माध्यम के रूप में कार्य करता है। यह अध्ययन इस बात पर केंद्रित है कि हिमाचली लघु कथाओं में निहित सांस्कृतिक मूल्य, प्रथाएँ और परंपराएँ अनुवाद के माध्यम से कैसे प्रतिध्वनित होती हैं। चुनिंदा हिमाचली लघु कथाओं का विश्लेषण करके, यह मूल सांस्कृतिक सार को कम किए बिना भाषाई और सांस्कृतिक मुहावरों को एक भाषा से दूसरी भाषा में स्थानांतरित करने की सूक्ष्म प्रक्रिया की खोज करता है। इसके अलावा, शोध क्षेत्रीयता को पकड़ने की चुनौतियों पर प्रकाश डालता है।
दूसरे आमन्त्रित वक्ता के रूप में टांडा मेडिकल कॉलेज से मनोचिकित्सक डॉ पंकज कंवर उपस्थित रहे। उनका मुख्य विषय था - मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और उनसे बचाव के उपाय । उन्होंने डिप्रैशन, एंजायटी, और आत्महत्या इत्यादि मानसिक समस्याओं के बारे में तथा उनसे निदान के बारे में विस्तार से बात की । उन्होंने बताया कि किसी मनोचिकित्सक द्वारा किसी मानसिक रोगी के साथ सम्बन्धपूर्वक बातचीत एवं सलाह मनोचिकित्सा या मनश्चिकित्सा (Psychotherapy) कहलाती है। यह लोगों की व्यवहार सम्बन्धी विविध समस्याओं में बहुत उपयोगी होती है। मनोचिकित्सक कई तरह की तकनीकें प्रयोग करते हैं, जैसे- प्रायोगिक सम्बन्ध-निर्माण, संवाद, संचार तथा व्यवहार-परिवर्तन आदि। इनसे रोगी का मानसिक- स्वास्थ्य एवं सामूहिक-सम्बन्ध (group relationships) सुधरते हैं।
इस कांफ्रेंस की मौखिक अभिव्यक्ति में बेस्ट पेपर प्रेसेंटेशन डॉ अरुणदीप शर्मा, डॉ वसुधा वैद और मिस्टर मोहित सोनी का रहा।पोस्टर प्रेजेंटेशन में शिखा और स्माइली ने प्रथम स्थान, नितिशा, अंकिता और यामिनी चौहान ने द्वितीय स्थान तथा वंशिका, सुरभि, साक्षी और अंबिका ने तृतीय स्थान प्राप्त किया ।
महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ बलजीत सिंह पटियाल ने बताया कि इस कांफ्रेंस की सफलता का श्रेय आमंत्रित वक्ताओं, शोधार्थियों, ऑर्गेनाइजिंग टीम, कर्मठ शिक्षक और गैर शिक्षक वर्ग तथा विद्यार्थियों को जाता है ।
What's Your Reaction?






