पर्यावरण इतिहास पर शोध करने की नितांत आवश्यकता: प्रोफेसर धीरेंद्र दत्त डंगवाल

हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय क्षेत्रीय केंद्र धर्मशाला मैं इतिहास विभाग के सौजन्य से दो दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद का शुभारंभ 7 मार्च 2025 को हुआ जिसमें क्षेत्रीय केंद्र के निदेशक प्रोफेसर कुलदीप अत्री ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की I

Mar 7, 2025 - 18:44
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पर्यावरण इतिहास पर शोध करने की नितांत आवश्यकता: प्रोफेसर धीरेंद्र दत्त डंगवाल
पर्यावरण इतिहास पर शोध करने की नितांत आवश्यकता: प्रोफेसर धीरेंद्र दत्त डंगवाल

सुमन महाशा। धर्मशाला

हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय क्षेत्रीय केंद्र धर्मशाला में इतिहास विभाग के सौजन्य से दो दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद का शुभारंभ 7 मार्च 2025 को हुआ जिसमें क्षेत्रीय केंद्र के निदेशक प्रोफेसर कुलदीप अत्री ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की I "भारत के पर्यावरण इतिहास पर पुनरावलोकन: मुख्य मुद्दे और चुनौतियां" विषय पर आधारित राष्ट्रीय कांफ्रेंस में मुख्य बीजवक्ता के रूप में डॉ भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली के प्रोफेसर एवं प्रसिद्ध पर्यावरण इतिहासकार डॉ धीरेंद्र दत्त डंगवाल उपस्थित रहे I मुख्य अतिथि ने विभिन्न राज्यों से आए हुए इतिहासकारों विद्वानों और शोधार्थियों का अभिनंदन किया I उन्होंने विद्यार्थियों से आह्वान किया की पढ़ाई के साथ-साथ विश्वविद्यालय में शोध आधारित गतिविधियों में रुचि लें I

मुख्य वक्ता डॉ. धीरेंद्र दत्त डंगवाल ने कहा कि पर्यावरण अध्ययन की विश्व भर में महत्वपूर्ण आवश्यकता है I सारा विश्व पर्यावरण में आ रहे बदलावों के कारण पर्यावरण समस्याओं का सामना कर रहा है I भारत में पर्यावरण इतिहास 1980 के दशक में एक अलग शोध क्षेत्र के रूप में रूप में उभरा है I हिमालय क्षेत्र में पर्यावरण असंतुलन से मानव और वन्य जीव जंतुओं पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है I पर्यावरण में बदलावों के कारण हिमालय क्षेत्र में अत्यधिक वर्षा, बाढ़, बादल फटने की घटनाएं और भूकंप जैसी आपदाओं में अत्यधिक वृद्धि हुई है अतः यह आवश्यक है कि भारत के पर्यावरण इतिहास और पर्यावरण संरक्षण की परंपरागत विधियों पर व्यापक शोध हो ताकि पर्यावरण समस्या के मुख्य मुद्दों और चुनौतियों को समझने में मदद मिले I

 इतिहास विभाग के समन्वयक एवं राष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक डॉ.राजकुमार ने राष्ट्रीय कांफ्रेंस के आयोजन के उद्देश्यों पर विस्तृत रिपोर्ट पढ़ी I उन्होंने बताया कि दो दिवसीय राष्ट्रीय कांफ्रेंस में विभिन्न विश्वविद्यालय और संस्थाओं के 125 से ज्यादा विद्वान ऑफलाइन और ऑनलाइन माध्यम से शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे वही इतिहास विभाग के 101 भी भाग ले रहे हैं I

इस अवसर पर इतिहास विभाग द्वारा संपादित अक्टूबर 2024 में आयोजित राष्ट्रीय कांफ्रेंस की प्रोसीडिंग बुक का मुख्य अतिथि द्वारा गरिमामय कार्यक्रम में विमोचन किया गया साथ ही राष्ट्रीय कांफ्रेंस की सम्मारिका का भी विमोचन किया गया I संगोष्ठी के आयोजन सचिव राजेंद्र शर्मा ने बताया कि 7 मार्च को 80 विद्वान और शोधार्थी क्षेत्रीय केंद्र धर्मशाला में शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे वहीं 8 मार्च को ऑनलाइन माध्यम से 70 से अधिक विद्वान शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे I

यह भी रहे उपस्थित

प्रोफेसर डीपी वर्मा, प्राचार्य विधि विभाग क्षेत्रीय केंद्र, डॉ रविंद्र सिंह गिल, प्राचार्य राजकीय महाविद्यालय तकीपुर, डॉ सचिन कुमार, प्राचार्य राजकीय महाविद्यालय देहरी, डॉ महेंद्र कुमार सलारिया, प्राचार्य राजकीय महाविद्यालय सलूनी चंबा, डॉ संजय सिंह पठानिया, राजकीय महाविद्यालय धर्मशाला, डॉ सुमन कुमार, जम्मू विश्वविद्यालय, करतार चंद, संध्याकालीन विभाग शिमला. डॉ भगवती प्रसाद राजकीय महाविद्यालय नादौन, विकास कालोतरा राजकीय महाविद्यालय जयसिंहपुर

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