जाति और धर्म के आधार पर नामकरण में न्यायोचित दृष्टिकोण अपनाने की अपील
लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण अभियान की राष्ट्रीय कोर कमेटी के सदस्य पीसी विश्वकर्मा ने संस्थानों, झीलों, पर्यटक स्थलों और शिक्षण संस्थानों के नामकरण के मामले में न्यायोचित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया।

नितिन भारद्वाज। नगरोटा सूरियां
लोकतान्त्रिक राष्ट्र निर्माण अभियान की राष्ट्रीय कोर कमेटी के सदस्य पीसी विश्वकर्मा ने संस्थानों, झीलों, पर्यटक स्थलों और शिक्षण संस्थानों के नामकरण के मामले में न्यायोचित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि जाति या धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए। विश्वकर्मा ने उदाहरण देते हुए बताया कि पोंग बांध सागर जलाशय का नाम धूमल सरकार ने महाराणा प्रताप के नाम पर "प्रताप सागर" रखा है, जबकि महाराणा प्रताप का इस क्षेत्र से कोई संबंध नहीं था। उनके अनुसार, इस जलाशय का नाम गुलेर रियासत के पहले राजा हरि सिंह या चित्रकार नयन सुख के नाम पर रखा जा सकता था, जिन्होंने अपने योगदान से विशेष पहचान बनाई थी। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर की महारानी दिद्दा, जो लोहार जाति से थीं, ने महमूद गजनवी को हिंदुस्तान में घुसने से रोक लिया था और हिंदू धर्म की रक्षा की थी। इसके बावजूद, उनके नाम पर कोई स्मारक या संस्थान नहीं है। विश्वकर्मा ने बीजेपी सरकार से अपील की कि वह रानी दिद्दा के नाम पर विश्वविद्यालयों या सैन्य संस्थाओं का नामकरण करे और हिमाचल प्रदेश सरकार से भी नयन सुख जैसे महान कलाकार को सम्मानित करने की मांग की। उन्होंने शिमला में लोहार जाति के दस्तकार बाबा भल्कू के सम्मान में बने संग्रहालय का उदाहरण देते हुए कहा कि जातिवाद आधारित राजनीति केवल अपनी जाति के व्यक्तियों को ही सम्मान देती है, जबकि ऐतिहासिक हस्तियों का उचित सम्मान नहीं किया जाता। इसके अलावा, उन्होंने देहरा में पृथ्वी राज चौहान के स्मारक पर भी सवाल उठाए और पूछा कि पृथ्वी राज चौहान का देहरा से क्या संबंध था, और क्या यह वास्तव में एक ऐतिहासिक कनेक्शन था।
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