सरकार LDR नीति से कर रही राजनीति: कुलदीप मनकोटिया
कुलदीप मनकोटिया ने कहा कि सरकार LDR नीति से SMC शिक्षकों और बेरोजगारों के साथ राजनीति कर रही है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना हो रही है।
सुमन महाशा | धर्मशाला
हिमाचल प्रदेश बेरोजगार अध्यापक संघ के पूर्व अध्यक्ष कुलदीप मनकोटिया ने प्रदेश सरकार पर SMC शिक्षकों के मुद्दे पर राजनीतिक खेल खेलने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा लागू की गई LDR नीति (Limited Direct Recruitment) पूरी तरह असंवैधानिक है और यह सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की सीधी अवहेलना है।
⚖️ “SMC नीति स्पष्ट है, सुप्रीम कोर्ट का आदेश सर्वोपरि”
कुलदीप मनकोटिया ने कहा कि हाई कोर्ट शिमला और सुप्रीम कोर्ट दोनों यह साफ कर चुके हैं कि SMC शिक्षकों की सेवाएं केवल तब तक वैध हैं जब तक संबंधित स्कूल में नियमित शिक्षक की नियुक्ति नहीं हो जाती।
उन्होंने कहा —
“SMC शिक्षकों की नियुक्ति SMC नीति के तहत हुई थी, इसलिए उन्हें उसी नीति के अनुसार हटाना भी जरूरी है।”
मनकोटिया ने सरकार से पूछा कि जब नीति में 5 प्रतिशत की बात कही गई थी तो 100 प्रतिशत तक भर्ती करना खुद अपने ही नियमों की अवहेलना नहीं तो क्या है?
🏫 “सरकार बताएं, कितनी नियमित भर्ती हुई?”
पूर्व अध्यक्ष ने सरकार से सीधा सवाल किया कि सत्ता में आने के बाद से अब तक कितनी नियमित शिक्षकों की नियुक्तियां की गई हैं और कितने स्कूलों में SMC शिक्षकों की जगह रेगुलर टीचर भेजे गए हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार न तो नई भर्ती कर रही है और न ही कोर्ट के आदेशों का पालन।
⚠️ “संविधान से ऊपर नहीं सरकार”
मनकोटिया ने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने अपनी मनमानी जारी रखी, तो बेरोजगार अध्यापक संघ फिर से न्यायालय का दरवाजा खटखटाएगा और पूरे प्रदेश में आंदोलन शुरू करेगा।
उन्होंने कहा —
“प्रदेश सरकार संविधान से ऊपर नहीं है। अगर न्याय नहीं मिला, तो बेरोजगार शिक्षक सड़कों पर उतरने को मजबूर होंगे।”
🗣️ सरकार से सीधी अपील
कुलदीप मनकोटिया ने मीडिया के माध्यम से सरकार से आग्रह किया कि वह जल्द से जल्द नियमित भर्ती प्रक्रिया शुरू करे, स्कूलों के खाली पदों को भरे और कोर्ट के आदेश के अनुसार SMC शिक्षकों की सेवाएं समाप्त कर नियमित शिक्षकों को भेजे।
🔚 निष्कर्ष
SMC शिक्षकों का मुद्दा एक बार फिर हिमाचल की राजनीति में केंद्र बिंदु बन गया है।
जहां एक ओर सरकार शिक्षा सुधार की बात कर रही है, वहीं बेरोजगार अध्यापक संघ इसे संवैधानिक अवहेलना और राजनीतिक दोहरापन बता रहा है।
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