हिमाचल सरकार को कर्मचारियों का वेतन देना हो गया चिंता का विषय
हिमाचल प्रदेश में कर्ज की स्थिति गंभीर हो गई है, खासकर नए वेतन आयोग की सिफारिशों के बाद। कर्मचारियों के वेतन और एरियर के बढ़ते खर्च ने राज्य सरकार को वित्तीय संकट में डाल दिया है।

ब्यूरो रिपोर्ट। देहरा
हिमाचल प्रदेश कर्ज के लपेड़े में फंस गया है। पिछले दस साल से कंपट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया जिस कर्ज की तरफ इशारा कर रहा था, वो अब सचाई बन चुकी है। नए वेतन आयोग की मंजूरी की सिफारिशों के बाद हिमाचल सरकार को कर्मचारियों का वेतन देना हो गया मुश्किल।
वर्ष 2026-27 में राज्य सरकार को कर्मचारियों के वेतन पर ही सालाना 20,639 करोड़ रुपए खर्च करने होंगे। राज्य सरकार के लिए एरियर की जिम्मेदारी मुश्किल होती चली जा रही है।`कॉन्ट्रैक्ट पीरियड को पेंशन के लिए गिना जाना। बकाया एरियर आदि को लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जिस तरह से आदेश आ रहे हैं, उससे हालात काबू से बाहर हो रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2018-19 के बाद से बेशक सरकारी कर्मचारियों की संख्या कम हो रही है, लेकिन वेतन का खर्च बढ़ रहा है। खर्च बढ़ने में नए वेतन आयोग की सिफारिशें भी हैं। हिमाचल सरकार ने दर्ज किया है कि नए वेतन आयोग के बाद से सरकारी कर्मचारियों के वेतन का खर्च 59 प्रतिशत तक बढ़ गया है। राज्य सरकार में शिक्षा व स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों की संख्या सबसे अधिक है और इन्हीं दो विभागों के कर्मचारियों के वेतन पर सबसे अधिक खर्च हो रहा है।
वित्त आयोग के समक्ष पेश किए गए आंकड़ों पर गौर करें तो शिक्षा व स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों पर वर्ष 2017-18 में वेतन का खर्च 5615 करोड़ रुपए था. ये बढ़कर 2018-19 में 5903 करोड़, फिर वर्ष 2019-20 में 6299 करोड़ और 2020-21 में 6476 करोड़ रुपए हो गया. वर्ष 2025-26 में वेतन का ये खर्च 9361 करोड़ रुपए सालाना हो जाएगा।
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