ईश्वर का साक्षात्कार करने के लिए जीवन में पूर्ण गुरु की आवश्यकता है :- डॉ. सर्वेश्वर

पालिटेक्निक कॉलेज ऑडियोटोरियम कांगड़ा में चल रही सात दिवसीय श्री राम कथा के दूसरे दिन दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक एवं संचालक

Jun 26, 2024 - 19:58
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ईश्वर का साक्षात्कार करने के लिए जीवन में पूर्ण गुरु की आवश्यकता है :- डॉ. सर्वेश्वर

सुमन महाशा। कांगड़ा

पालिटेक्निक कॉलेज ऑडियोटोरियम कांगड़ा में चल रही सात दिवसीय श्री राम कथा के दूसरे दिन दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक एवं संचालक सर्व आशुतोष महाराज की परम शिष्य कथा व्यास स्वामी डॉ. सर्वेश्वर जी ने अपने विचारों में कहा कि जब-जब भी इस धरा पर पाप बढता है और धर्म की हानि होती है, तब-तब ईश्वरीय शक्ति अवतार धारण करती है। मानव जीवन में दैवीय गुण स्थापित कर सम्पूर्ण जड़ता को समाप्त करने के लिए वो सर्वशक्तिमान परमात्मा निर्गुण से सगुण रूप धारण कर इस धरा पर आते हैं। 

त्रेतायुग में भी जब रावण का अत्याचार बढ़ गया तब ईश्वर श्रीराम जी के रूप में धरती पर अवतार धारण करते हैं। लेकिन विचार करने योग्य बात तो यह है कि जब ईश्वर धरती पर अवतार धारण करके आते हैं तो कितने लोग उन्हें पहचान पाते हैं। प्रभु के साथ रहने वाली माता कैकेयी व मंथरा उन्हें पहचान नहीं पाई। रावण ने जब प्रभु को देखा तो उन्हें वनवासी कहकर सम्बोधित किया। लेकिन माता शबरी ने प्रभु श्री राम को प्रथम भेंट में ही पहचान लिया था। 

इसका कारण यह है कि हम इन स्थूल नेत्रों से प्रभु को नहीं पहचान सकते। मां शबरी के पास दिव्य नेत्र था जो उन्हें गुरू मतंग मुनि ने प्रदान किया था। रावण, कैकेयी, मंथरा आदि के पास यह दिव्य चक्षु नहीं था। इसलिए दिव्य चक्षु का खुलना आवश्यक है, जिसके आधार पर हम उस ईश्वर को पहचान सकते हैं। और यह दिव्य चक्षु केवल एक पूर्ण सद्गुरु ही प्रदान करते हैं। इसलिए जीवन में एक पूर्ण सद्गुरु की जरुरत है जो ऐसा नेत्र प्रदान करें जिससे हम ईश्वर को घट में ही देख सकें। 

इस अवसर पर कथा में "राम आएंगे तो अंगना सजाऊंगी" भजन गाकर श्रोताओं को निहाल किया गया।

कथा के दूसरे दिन के भूषण रैणा - कांगड़ा विभाग संघ चालक RSS, बाल कृष्ण रैना, गुरु द्रोणाचार्य नर्सिंग कालेज, वासु शर्मा, डॉ. अरुण धवन , नरेन्द्र RSS कार्यकर्ता, डॉ. राजिन्द्र , पवन सूद पठियार ,विनेश वस्सी, अमन अग्रवाल, पूजा अग्रवाल, आयुश अग्रवाल, आदि उपस्थित रहे व कथा को विराम प्रभु की पावन आरती से किया गया।

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